वैयावच्च

मने सेवा भ्रमणनी मलजो रे...

जिनशासन की अमूल्य धरोहर स्वरुप हमारे साधु - साध्वी भगवंत

निस्वार्थ भाव से लगातार 8 माह तक गामा नु गाम विचरण करते हुए

परमात्मा वीर की वाणी को एक प्रतिबोधक के रुप मे

हमारे संघो मे प्रसारित करते है।

इन साधु - साध्वी भगवंतो की सेवा की जिम्मेदारी हम सभी का कर्तव्य है।

पूज्य गणिवर्यश्री की प्रेरणा से

मालवा में विचरणरत पूज्य श्रमणी भगवंतों

---+ की सर्व प्रकार से सेवा भक्ति का लाभ

एवं विहार दरम्यान समस्त वैयावच्च

का लाभ आदर्श फाउण्डेंशन को प्राप्त होता है |

अनुकंपा

हृदय के कंपन से उद्भावित होने वाली करुणा (दया)

वो है अनुकंपा...


शासन में दान के पांच प्रकार बताये गये है

उनमें से एक है अनुकंपा...


यह एक ऐसा दान है तो विश्व के प्रत्येक गरीब के लिए ।॥6 ॥॥6है

जो यह दान करता है उसका परभव 5॥॥॥8 है...


अनुकंपा दान एक ऐसी नींव है

जो हमारी मुक्ति की मंजिल को और मजबूत बनाती है


मनुष्य जीवन जो मानवता से महकता है

तो वह अनुकंपा दान से ही उत्पन्न होती है।


गरीबो की मदद, भूकंप, सुनामी लहर, अनाथ आश्रम, युद्ध

में ग्रस्त परिवारों की मदद , आदि यह सब है

अनुकंपा दान...


पूज्य गणिवर्यश्री की प्रेरणा से

मालवा के कई स्थानों पर

प्रतिदिन - सप्ताह में 2 बार - साप्ताहिक एवं

प्रासंगिक अनुकंपा दान

का कार्य किया जाता है

जीवदया

?? का अस्ति जीवदया ???


उत्तर : यथा जीवानाम्‌ प्राणा: रक्षिता सा अस्ति जीवदया।


जिसके द्वारा जीवों के प्राणो की रक्षा कराती है वो है जीवदया। क्योकि विश्व का प्राणी मात्र जीना चाहता है कोई भी मरना नही चाहता।

इसलिए विश्व सभी त्रस और स्थावर जीवो की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। परमात्मा को सभी जीवों के प्रति अत्यंत दया का भाव था बस इसी

दया भाव ने उनकी आत्मा को परमात्मा बना दिया।

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करेंगे हम जीवो की रक्षा, जिससे होगी हमारी आत्म सुरक्षा

देंगे हम अभयदान, उससे होगा हमारा आत्म उत्थान

बचायेंगे हम जीवो के प्राण, यही है हमारे मोक्ष का प्रमाण ॥


इन्ही पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए

समग्र म.प्र. की गोंशाला - पांजरापोंल में निरंतर


सेवा राशि का समर्पण किया जाता है

तप

 गणिवर्य श्री की निश्रा मे वर्षभर मे कई जिनशासन प्रभावक आराधना - साधना करवाई जाती है

छ:रि पालित संघ, अंजनशलाका प्रतिष्ठा, उपधान, सामुहिक जाप आदि

विशेषकर चातुर्मास दौरान सामुहिक पौषध, सामुहिक आयंबिल, सामुहिक अट्ठम, सांखली तपस्या

सामुहिक जाप, भक्तों को अधिक से अधिक जप - तप का संकल्प दिया जाता है

ताकि वे सभी धर्म मार्ग मे अग्रसर हो अपना पूण्य प्रबल कर सकें एवं पाप कर्म के उदय से होने वाले दुषप्रभाव को

सहन करने की शक्ति प्राप्त कर, मोक्ष मार्ग की और अग्रसर बनें ।

साधर्मिक

जिन व्यक्तियों के धर्म में समानता होती है वही है साधर्मिक


कहते है देश है तो धर्म है, धर्म है तो हम है

धर्म को टिकाये रखने के लिये कमजोर साधर्मिक को

मजबूत बनाना बहुत जरुरी है।

साधर्मिक की रक्षा ही धर्म की रक्षा है।

शासन मेरा महान है साधर्मिक मेरी शान है

जिसने किया साधर्मिक का सिलेक्शन , मोक्ष में हुआ उसका रिजर्वेशन

जिसने दिया साधर्मिक को दान, जगत मे हुआ उनका सम्मान


जो कहे ....... मैं और मेरा साधर्मिक

वो ही है महावीर का सच्चा श्रावक